प्रबन्ध का अर्थ तथा परिभाषा -
प्रबन्ध किसी दूसरे व्यक्तियों से कार्य कराने का युक्ति है । इस प्रकार वह व्यक्ति अन्य व्यक्तियों से मिलकर कार्य कराने का झमता रखता है ,प्रबन्ध,( manager )कहलाता है। दूसरे शब्द में ,प्रबन्ध वह प्रक्रिया है जिसमें काम को कुशल एवम प्रभावी ढंग से व्यक्तियों से कार्य कराने का एक समूह है । जिससे नियोजन ,निर्देशक, व नियंत्रण को सम्पन्न किया जाता है ।
विभिन्न विद्वानों ने प्रबन्ध शब्द को प्रभाषित किया है-
स्टेनले वेन्स (Stanley vance) के शब्दो में ,"प्रबन्ध केवल निर्णय लेने की मानवीय क्रियाओं पर नियंत्रण रखने की विधि है। जिससे निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति की जा सके ।,"
कूंट्ज ओ डोनेल( Koontz and o'Donnell) के शब्दो में ,"प्रबन्ध का कार्य अन्य व्यक्तियों द्वारा उनके साथ मिलकर कार्य को करना ही प्रबन्ध कहलाता है ।,"
हेनरी फेयोल (henry Fayol) के अनुसार ,"प्रबन्ध का अर्थ भविष्य में पूर्वानुमान लगाना , नियोजन बनाना , संगठन बनाना , निर्देशक देना , समन्वय तथा नियंत्रण करने से है," ।
लारेंस ए एप्पल( Lawrence A appley)के अनुसार,"
प्रबन्ध व्यक्तियों के विकाश से संबंधित है न की वस्तुओं के निर्देशन से ,"
निष्कर्ष उपर्युक्त रूप से कहा जा सकता है की प्रबंध सुजनात्मक या प्रेरणात्मक कार्य है जो मानवीय प्रयासों के नियोजन ,संगठन , समन्वय ,निर्देशक नियंत्रण। आदि के लक्ष्य की प्राप्ति की जा सके ।
प्रबन्ध की प्रकृति (Nature of management) -
किसी भी उपक्रम में कार्यरत व्यक्तियों के द्वारा अपनी अपनी भूमिकाओं को समझना आवश्यक है। प्रबन्ध के क्षेत्र में व्याप्त नई प्रवृत्तियों को समझना कुछ कठिन बना दिया है ।विभिन्न व्यक्ति प्रबन्ध की प्रकृति को भिन्न भिन्न अर्थों में प्रयोग किया जा रहा हैं । उदाहरण के लिए एक इंजीनियर प्रबंध का एक मुख्य उदाहरण है ।यह उत्पादित को जाने वाली वस्तु को डिजाइन एवं यंत्र को उत्पादन से लगाता है । जबकि एक रसायनशास्त्री विभिन्न सूत्रों के रूप में इसे समझने के लिए प्रयास करते है । इसे विभिन्न अपने अपने भूमिकाओं को समझने। के लिए प्रबंध या प्रकृति का ज्ञान आवश्कता है । जिससे वह अपने। कार्य को निष्पादन करने में रुचि ले। और इसे पूरा करना आवश्यक है ।
प्रबंध के प्रकृति निम्न है ।
1. प्रबंध एक कला है ।
प्रबंध को सामान्यतया कला समझा जाता है क्योंकि कला का अर्थ होता है किसी भी कार्य को करने अथवा किसी भी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए ज्ञान तथा कुशल होना आवश्यक है। वास्तव में कला सिद्धांतो को व्यावहारिक रूप प्रदान करने का विधि है।
2. प्रबंध एक विज्ञान है।
प्रबंध सिद्धांतो के आधारित है। विज्ञान ज्ञान की वह रूप है जिसमे अवलोकन तथा प्रयोगों द्वारा कुछ सिद्धांत निर्धारित करता है । विज्ञान को दो भागों में विभाजित किया जाता है। वास्तविक विज्ञान तथा नीति प्रधान विज्ञान । वास्तविक विज्ञान के अंतर्गत केवल हम वास्तविक तथा वर्तमान अवस्था का अध्यन करेगे जबकि नीति प्रधान विज्ञान के अंतर्गत हम आदर्श को निर्धारित करेगे ।तथा विद्वानों ने अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर समय समय पर व्यवसाय के सिद्धांतो का प्रतिपादन करते है ।
3. प्रबंध एक पेशा है
आधुनिक काल से विद्वानों का कहना है ही प्रबन्ध एक पेशा है और यह धीरे धीरे इसका विकास हो रहा है । जैसे अमेरिका जापान इंग्लैंड जर्मनी जैसे देशों में व्यावसायिक प्रबंध स्वतंत्र रूप में विकसित हो चुका है तथा प्रबंधकों को उनके उसके योग्यता के अनुसार कार्य को सौंपा जाता है। इस लिए कहा जाता है की प्रबंध के पेशा है।
4. प्रबंध एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है
प्रबंध का महत्व सर्वव्यापी है जिसका तात्पर्य यह है कि प्रबंध
के सामान्य सिद्धान्त धार्मिक, राजनैतिक तथा अन्य सभी क्षेत्रों में लागू होते है । कोई भी संस्था अपने सामूहिक प्रयत्नों के द्वारा अपने उद्देश्यों को प्राप्त करना होता है । , इन लक्ष्य के बिना कोई नियोजन , समन्वय, निर्देशक , नियंत्रण आदि को प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
5. प्रबंध एक अदृश्य शक्ति है
प्रबंध एक अदृश्य शक्ति है तो साधनों के सर्वोत्तम उपयोग करती है। इस शक्ति का ज्ञान उस समय होता है जब एक प्रबंधक का स्थान दूसरा कोई लेता है । यदि जब प्रथम प्रबंधक का प्रयास सफल हो जाता है तो उसे कुशल प्रबंधक कहते है यदि दूसरे प्रबंधक का प्रयास असफल हो जाता है तो उसे अकुशल प्रबंधक जाता है ।
6. प्रबंध एक जन्मजात प्रतिभा है
प्रबंध जन्म लेते है , बनाए नहीं जाते है । कुछ व्यक्ति जन्म से ही इतने अधिक योग कुशल होते है की ओ दूसरों पर निर्धारित नहीं होते है और वह दूसरों को नेतृत्व तथा संगठन करने का j क्षमता रहते है ये गुण इनमे जन्मजात होते है । इसलिए इसे कहा जाता हैबकी प्रबंध एक जन्मजात होते है ।
7. प्रबंध सभी स्तर पर होता है
8. प्रबंध एक सामाजिक उत्तरदायित्व है।
9. प्रबन्ध और स्वामित्व प्राय: भिन्न होते है ।
• प्रबन्ध का उद्देश्य( Objectives of Management)-
प्रत्येक मानवीय क्रिया का कोई न कोई उद्देश्य होता है ।इसका कारण यह है की जब तक प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्य पहले से निशिचत नहीं हों तक तक उनकी प्राप्ति के लिए अपेक्षित नहीं प्रयास किए जा सकेंगे। किसी भी उद्देश्य या लक्ष्य को निशिचत रूप से प्राप्त करने
के लिए सही ढंग से कार्य करने में सहायता मिलती है।
1. प्राथमिक उद्देश्य( primary objectives)-
बाजार में विक्रय योग्य वस्तुएं तथा सेवाएं प्रदान करना प्रबंध का प्राथमिक उद्देश्य है। ऐसी वस्तुएं एवं सेवाएं प्रदान करने पर उपभोक्ता को वस्तुएं और सेवाएं प्राप्त होती है जो ओ चाहते ज हैं और उपक्रम के सहयोगी सदस्यों को प्राप्त प्रतिफल से उनका परिश्रमिक मिलना संभव हो पाता है। इस प्रकार प्राथमिक उद्देश्य प्रत्येक प्रबंध सदस्य द्वारा किए जाने वाले कार्य का निर्धारण करता है ।
प्राथमिक उद्देश्य के अंतर्गत निम्नलिखित को विशेष महत्व किया जाता है ।
2.सहायक उद्देश्य(Secondary Objectives)-
सहायक उद्देश्य प्राथमिक उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायक करते हैं जो कार्य निष्पादन में कुशलता एवम मितव्ययिता में वृद्धि करने हेतु निर्धारित किए जाते हैं उनको लक्ष्यओ में अवगत कराते है।
3. व्यक्तिगत उद्देश्य( personal objectives)-
इन उद्देश्य का अभिप्राय संगठन के सदस्यों के निजी एवं व्यक्तिगत उद्देश्य से हैं। यह उद्देश्य प्राथमिक एवं सहायक उद्देश्यों के अधीन होते हैं अर्थात प्राथमिक एवं सहायक उद्देश्यों की पूर्ति होने पर ही व्यक्तिगत उद्देश्य उद्देश्य या तो आर्थिक लक्ष्य तथा मैद्रिक परिश्रमिक एवं भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति संबंधित लक्ष्य होते हैं। इन आवश्यकता को कोई व्यक्ति एवं संगठन के अंतर्गत कार्य करते समय संतुष्ट करने का प्रयास करता है संगठन द्वारा प्रदान की जाने वाली अभिप्रेरणाओं और व्यक्तिगत योगदान आत्मनिर्भर होना अत्यंत कठिन है निष्कर्ष रूप से कह सकते हैं कि प्रत्येक संगठन भी प्रकृति वाले लोगों का एक समूह होता है यह लोग अपने नव सकता को पूर्ति करने के लिए संगठन बनाते हैं ।
4.सामाजिक उद्देश्य( social Objectives)-
सामाजिक उद्देश्य का अभिप्राय एक संगठन के समाज के प्रति लक्ष्य तथा दायित्व से है । इसके अंतर्गत वे कर्तव्य सम्मिलित होते हैं जो किसी भी संस्था के लिए समाज द्वारा निर्धारित की जाते हैं स्वास्थ्य के लिए सुरक्षा के साथ में अच्छा व्यवहार मूल नियंत्रण आदि संबंधित सामाजिक कर्तव्य इसके अतिरिक्त और कर्तव्यो में कर्तव्य सम्मिलित होते हैं एक व्यवसाय उपक्रम में एक व्यवसायिक उपकरण में प्रबंध को संपूर्ण समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व को ध्यान में रखना चाहिए। क्योंकि उपक्रम समाज का ही एक अंग होता है अतः प्रबंध को समाज की सेवा के संबंध में अपने उद्देश्य को निर्धारित करना चाहिए जिससे कि वह अपने उत्तरदायित्व पूर्ति कर सकें।