उपक्रम के चुनाव में साहसी को किन बातों पर ध्यान रखना चाहिए ?

         उपक्रम का चुनाव उत्पाद के प्रकृति  मात्रा ,   साहसी की स्वयं की  योग्यता ,क्षमता सामर्थ्य , आदि अनेक बातों पर निर्भर करता है  । सामान्य: ऐसा कहा जाता है उपक्रम का चुनाव कोई  मनगढ़ंत विचार नहीं होता  वरना यह सुनियोजित योजना की तरह होना चाहिए। 


        यदि उपक्रम की प्रकृति बैकिंग एवम बीमा से संबंधित हो तो यह एकांकी व्यापार  संयुक्त हिंदू परिवार तथा साझेदारी फर्म के रूप में नहीं  चलायी जा सकती है ।  उपक्रम का संगठन   साहसी के अधिकार एवं दायित्व को निर्धारित करता है यह काम काफी सोच विचार कर  करनी चाहिए, क्योंकि एक बार एक संगठन को चुनाव लेने के बाद इसमें फेर बदल करना मुश्किल कार्य होता है

उपक्रम के चुनाव में ध्यान देने योग्य बातें-

        एक  साहसी  को उपक्रम  का चुनाव करते समय जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए उस बल्कि उनकी बातों को ध्यान  से सुनकर  सही  निर्णय लेना  चाहिए।   

उपक्रम के चुनाव में ध्यान देने  योग्य बात बाते निम्नलिखित है-

1.   स्थापना में आसानी( Easy Formation)- 

       यदि  कोई उपक्रम  जल्द और आसानी से स्थापित करना हो तो एक व्यापार ठीक रहता है सरकारी फॉर्म स्थापित करने के लिए समान मानसिक विचारधारा वाले अन्य साझेदारों को लेना पड़ता है । सरकारी समिति या संयुक्त पूंजी वाली कंपनी स्थापित करने के लिए अनेक  वैधानिक औपचारिकताओं का पालन करते हुए इनका पंजीकरण कराना पड़ता है अतः साहसी को  सोच विचार कर किसी एक को चुनाव करना चाहिए ।

2. व्यावसायिक क्रिया के प्रकार( Types of Business Activity )-

       साहसी को अपने व्यवसायिक क्रिया के अनुरूप उपक्रम का चुनाव करना चाहिए यदि  व्यापार  छोटे स्तर का   व्यक्तिगत सेवा जैसे दर्जी  नाई आदि  से  संबंधित एकाकी व्यापार का चयन किया जाना चाहिए यदि व्यापार बड़े पैमाने पर हो तो उसका निर्माण आदि से जुड़ा हुआ जो सरकारी या कंपनी उपक्रम ठीक करेग।

3. परिचालन का क्षेत्र (Area of Operation )-

       यदि व्यापार का परिचालन का क्षेत्र छोटा है अर्थात स्थानीय है एकाकी व्यापार का चुनाव उपयुक्त होगा परंतु परिचालन का क्षेत्र  बड़ा हो तथा राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर का हो तो  उपकरण कंपनी के रूप में रखना  चाहिए

4.  पूंजी की उपलब्धता ( Availability of Capital)-

       व्यवसाय के लिए कितनी पूंजी चाहिए  उसके लिए  साहसी को   सक्षम  होना चाहिए    यदि उसे एकाकी व्यापार का उपकरण भी  चुनना चाहिए यदि ऐसा नहीं है तो  साझेदारी के  उपयुक्त होगी किंतु इससे भी अधिक पूंजी की आवश्यकता होने पर   कंपनी प्रारूप वाला उपक्रम ठीक करेगा ।

5.  प्रत्यक्ष नियंत्रण( Direct Control)-

       यदि साहसी  अपने व्यापार पर प्रत्येक नियंत्रण रखना चाहते हैं  तो वह दूसरे का हस्तक्षेप नहीं पसंद करता है तो उसे एकाकी व्यापार या निजी कंपनी वाले उपकरण का चयन करना चाहिए।

6. गोपनीयता( Secrecy )-

      व्यवसाय की प्रकृति ऐसी होती है या गोपनीयता बनाए रखना अत्यंत आवश्यकता होता है ऐसी स्थिति में   एकाकी प्रारूप सर्वाधिका  होगा और ।

 7. सरकारी नियम ( Government Regulations)-

     प्रत्येक   उद्योग व्यापार को स्थानीय एवं सरकारी नियमों का पालन करना पड़ता है।  तो सरकारी नियमन कुछ तो  व्यवसाय की आकार के अनुसार लागू होते हैं तो कुछ स्वामित्व के आधार पर एकाकी व्यापार सिर्फ  छोटे आकार वाले उपकरण के लिए होते हैं जिसके चलते इन पर सरकारी नियंत्रण का मात्रक कुछ कम होती है ।    

8.  प्रकियागत औपचारिकताओं  की  पूर्ति( Completion of Procedural Formalities )-

    यद्यपि एकल व्यापार या  साझेदारी  व्यवसाय में  व्यवसाय में सामान्य औपचारिकताओं  पूर्ति करना पड़ता है जबकि कंपनी संगठन के अंतर्गत बहुत औपचारिकताओं को उत्पादों का रजिस्ट्रेशन इत्यादि का कार्य करने होते हैं।

9. उपक्रम का आरंभ (Launching the Enterprise)-

     उद्यमी को  उपरोक्त  वर्णित  कार्य करने से उपरांत आवश्यक संसाधनों जैसे मशीन    सामग्री प्रबंध  इत्यादि की व्यवस्था का उपक्रम  का प्रारंभ करना होता है।









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