किराया क्रय पद्धति का परिभाषा -
किराया क्रय पद्धति एक ऐसी पद्धति है जिसमें माल की कीमत सामायिक किस्तों द्वारा माल को करने के उद्देश्य से भुगतान की जाती है अंतिम किस्त के भुगतान तक का समय प्रत्येक भुगतान का किराया माना जाता है और माल का स्वामित्व क्रेता को तभी मिलता है जब कि उसके द्वारा सब किस्तों का भुगतान कर दिया जाता है।
जे .आर . बाटलीबॉय के शब्दो में ,"किराया क्रय पद्धति के माल एक ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है जो माल की कीमतें उसके स्वामी को सामायिक किस्तों द्वारा भुगतान करने का समझौता करता है ये किस्त उस समय तक माल के किरायों की तरह समझ जाती है और जब सभी किस्तों का भुगतान कर दिया जाता है तभी वह माल क्रेता को संपत्ति हो जाती है"
किराया क्रय पद्धति की विशेषताएं (Features of Hire Purchase System )
किराया क्रय पद्धति की विशेषताएं निम्नलिखित है-
1. समझौता ( Agreement )-
किराया क्रय पद्धति पर क्रय विक्रय के लिए क्रेता तथा विक्रेता के बीच समझौता होता है
2. सुपुर्दगी पर भुगतान (Payment on Delivery)-
किराया क्रय पद्धति के अंतर्गत साधारण समझौता करते समय या माल को सुपुर्दगी के समय क्रेता के ,माल के विक्रेता को एक निश्चित राशि चुकता है जिसे cash paid at the time of Agreement कहा जाता है
3. किराया क्रय मूल का नगद मूल्य से अधिक होना (Hire Purchase price is higher than Cash price)-
किराया क्रय मूल्य खुदरा नगद मूल्य ( Retail cash price) से अधिक होता है कि किराया क्रय मूल्य अदत राशि का ब्याज शामिल रहता है।
4. माल के उधर बिक्री Credit Sale of Goods )-
किराया क्रय पद्धति के अंतर्गत माल खरीदने के समय माल की कीमत का भुगतान नहीं किया जाता है और नगद भुगतान किया जाता है या आंशिक रूप से है यह कहा जाता है की इसमें माल की उधार बिक्री होती है ।
5. भुगतान किस्तों में होना (Payment is mase in Instalment )-
इस प्रणाली के अन्तर्गत माल खरीदने के समय माल का भुगतान एकमुश्त न होकर किस्तों में किया जाता है प्रत्येक किस्त की रकम शुरू से समझौता। होते समय निश्चित कर दिया जाता है ।जिसे किस्तों का भुगतान छमाही वार्षिक तिमाही या मासिक हो सकता है ।
6. माल के प्रयोग का अधिकार (Right to Use the Goods)-
माल का खरीद या बिक्री का समझौता होते ही प्रथम किस्त का भुगतान करने पर माल पर खरीदार को सौप दिया जाता है । जिसे माल को प्रयोग में लाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
7. विक्रेता से साथ स्वामित्व ( Ownership with the seller)-
इसमें माल का स्वामित्व। उस समय तक विक्रेता का रहता है । जब तक उसका अंतिम किस्त का भुगतान क्रेता। द्वारा न कर दिया जाए ।
8. विक्रेता को माल वापस लेने का अधिकार (Right to take back the Goods )-
अगर माल खरीदने वाला निर्धारित किस्त का भुगतान निश्चित तारीख पर नहीं करता है तब विक्रेता को माल लेने का अधिकार है क्योंकि माल का स्वामित्व अंतिम किस्त के भुगतान के समय तक विक्रेता के पास रहता है।
9. किस्तों को विक्रेता द्वारा जब्त करना ( To Forfeit the Instalments by Seller)-
अगर माल खरीदने वाला किसी भी किस्त का भुगतान निश्चित तिथि पर नहीं करता है तब तब विक्रेता जितना भी किस्त भुगतान के रूप में पाता है ।उनको जब्त कर लेता है और उसके बदले में क्रेता को कुछ वापस नहीं किया जाता है यह समझ लिया जाता है।
10. गारंटी देने वाले से राशि का वसूली किया जाना ( To Realize Money form the Guarantor)-
अगर इस तरह के समझौते में कोई गारंटी देने वाला है और किस्तों का भुगतान समय पर नहीं हुआ है और वसूली करने को सभी कार्यवाही असफल हो गई है तब विक्रेता इस रकम को गारंटी देने वालों को वसूल कर सकता है।
11. क्रेता का स्वामित्व(Ownership of the Purchaser)-
जब माल खरीदने वाला अंतिम किस्त का भुगतान कर देता है तभी माल का स्वामित्व उसके पास आता है। वरना वह विक्रेताबके साथ रहता है।
12. मरम्मत कराने का उत्तरदायित्व ( Responsibility to Repair)-
अगर माल खरीदने वाले ने वस्तु की यथा संभव देखभाल की है फिर भी वस्तु में कुछ टूट-फूट या खराबी आ जाती है तो उसकी मरम्मत का उत्तरदायित्व विक्रेता पर आता है।
13. क्रेता द्वारा वितरित करने पर (when the. goods are sold by purchaser)-
अगर कोई विक्रेता अंतिम किस्त के भुगतान से पहले किसी भी समय इस माल को बेचता है तब उसे दूसरे। विक्रेता को इस माल पर अच्छा अधिकार प्राप्त नहीं हो सकता है