प्रारम्भिक समस्याओं का मूल्यांकन
(Evaluation of start up problems)
उधमी द्वारा व्यवसाय प्रारम्भ करने का निर्णय उसके उसके व्यवसाय में निहित जोखिमों और प्रतिफल की मात्रा पर निर्भर करता है उपयुक्त पर विचार करने के पश्चात ही उसे अपना निर्णय लेना चाहिए ।
व्यवसाय को सामग्र योजना बनाने के पूर्व उद्यमी को उसे व्यवसाय में निहित जोखिमों समस्याओं और पुरस्कारों पर भी विचार कर लेना चाहिए।
और इन्होने विभिन्न पहलुओं पर विचार कर लेना चाहिए।
जोखिमों पर विचार
(Consideration of Risks)
उद्यमी को उधम प्रारंभ करने से पूर्व विभिन्न जोखिम का विश्लेषण कर लेना चाहिए जो इस निम्न प्रकार है
वित्तीय जोखिम
किसी नये उपक्रम को प्रारंभ करने में वित्तीय जोखिम का मूल्यांकन करना महत्वपूर्ण है ।जिसे उपक्रम में उद्यमी को अपने वित्तीय संसाधनों का विनियोग करना होता है और जिन पर उचित प्रत्याय प्राप्त किया जाना आवश्यक है ।उपयुक्त व्यवसाय प्रारंभ किए जाने पर पूंजी की लागत को वसूल करना भी असंभव हो जाता है।
व्यव्तित्व् जोखिम
personal Risks
व्यव्तित्व् जोखिम का विश्लेषण करना अत्यंत कठिन होता है इसका कारण यह है कि इसमें उद्यमी के प्रचार परिवार के सदस्यों सामाजिक मित्रों तथा उन व्यक्तियों का योगदान सम्मिलित होता है जिनकी प्रतिक्रियाओं का ज्ञान करना स्वयं की अपेक्षा कठिन होता है वित्तीय जोखिमों को कुछ परिस्थितियों में काम किया जा सकता है।
प्रतिफाल
(rewards)
सफल आदमी का प्रतिफल मौद्रिक और अमौद्रिक दोनों ही प्रकार का होता है एक सफल रूप में न केवल अधिक लाभ प्राप्त कर सकता है वरना वह अपने व्यवसाय में लगी ऊर्जा और योग्यताओं का भी आनंद अनुभव करता है धन के अतिरिक्त एक उद्यमी के प्रतिफल सामाजिक योगदान पेशावर संतुष्टि सामुदायिक स्तर तथा सत्ता को रूप में हो सकता है एक उद्यमी द्वारा व्यवसाय प्रारंभ करने का निर्णय उसकेव्यवसाय में नहीं और प्रतिफल की मात्रा पर निर्भर करता है और वह अपना विचार कर के स्वयं निर्णय ले सकता है।
व्यवसाय की सामान्य योजना का निर्माण
उद्यमी कुछ निश्चित उद्देश्यों को लेकर व्यवसाय प्रारंभ करता है वह अपनी व्यवसाय के लक्ष्य को परिभाषित करता और संसाधनों की मात्रा भी सीमित होती है अतः वह प्रारंभ करने के पूर्व उसकी एक समग्र योजना तैयार करता है ताकि व्यवसाय के बच्चों के प्रति न्यूनतम साधनों के द्वारा अधिकतम कुशलता के साथ किया जा सके उद्यमी के व्यवसाय के अनेक पहलुओं के संबंध में योजना बनाना होता है जो निम्नलिखित है।
1. उत्पाद नियोजन
product planning )
उत्पाद के सम्बन्ध में योजना बनाते समय बातों पर ध्यान रखना चाहिए । वास्तु में टिकाऊ सरल उपयोग विधि इससे पुर्जों की सहज उपलब्धता इत्यादि, वस्तु का डिजाइन आकार एवं श्रेष्ठ किस्म , और अतः संयोजन के उत्पादन की योजना वस्तु का आकर्षक नाम ब्रांड लेबल एवं उत्तम पैकेजिंग इत्यादि।
2.संयंत्र एवं उत्पादन नियोजन
(Plant and production planning )
क़्वस्तु की डिजाइन और अन्य संबंधित तत्वों की योजना बन जाने के बाद संयंत्र और उत्पादन प्रक्रिया के संबंध में योजना तैयार की जाती है जिससे इसके प्रमुख अंग निम्नलिखित है ।
1.संयंत्र स्थल
(Plant location)
संयंत्र के क्षेत्र में और स्थान का चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण होता है संयंत्र कहां स्थापित करना है यह निर्णय कई घटकों पर निर्भर करता है । जैसे कच्चा माल ,ईंधन ,जल ,श्रम और शक्ति की सुलभता बैंक परिवहन और संचार सुविधा बाजार की समता सहायक उद्योगों की उपस्थिति आदि ,आज प्रत्येक राज्यों में उद्योग धंधा का विकास के लिए सरकार द्वारा अनेक सुविधाएं का छूट दी जाती है।
2.संयंत्र अभिन्यास
(Plant layout)
संयंत्र अभिन्यास यंत्र प्रविधियां एवं अन्य सेवाओं को व्यवस्थित करने की योजना है उद्यमी को अपने उपक्रम की श्रेष्ठ अभिन्यास योजना तैयार करनी चाहिए ताकि न्यूनतम लागत एवं के साथ अधिकतम उत्पादन किया जा सके यदि अभिन्यास की योजना पर उचित ढंग से विचार नहीं किया गया तो कार्य कुशलता में कमी आ जाएगी ।जिसमें उत्पादन में अधिक समय बर्बाद हो जाएगा।
3. उत्पादन प्रणाली
(Production system)
उत्पादन प्रणाली की योजना के अंतर्गत उत्पादन विधि एवं क्रियो का चुनाव करना है उत्पादन विधि का चयन कई बातों पर निर्भर करता है जैसे वस्तु की प्रकृति ,उत्पादन का कार्य मशीन का प्रयोग ,तकनीकी ज्ञान इत्यादि ।
3 लागत नियोजन
(Cost planning)
क उत्पादन योजना तैयार हो जाने के बाद हो जाने के पश्चात उत्पादन लागत के प्रारंभिक अनुमान तैयार किए जाते हैं वस्तुअक्ष् का निर्माण लागत निकालने के लिए कच्चे माल मजदूरी प्रत्यक्ष खर्च कारखाने की लागत कार्यालय और बिक्री की लागत आदि का अनुमान लगाए जाते हैं इन विभिन्न खर्चों अनुमानो को जोड़कर वस्तु का निर्माण लागत ज्ञात की जाती है लागत योजना के अंतर्गत लागत नियंत्रण विभिन्न विधियां का निर्धारण भी आवश्यक है प्रतिस्पर्धा को देखते हुए वस्तु की लागत क्या रखना चाहिए उत्पादन का पैमाना कितना होना चाहिए आदि बातों पर विचार किया जाना चाहिए।
4. वित्तीय योजना
Financial planning
औद्योगिक उपक्रम की सफलता बहुत कुछ सीमा तक पूंजी के कुशल प्रबंधन पर निर्भर करती है ।अतः उद्यमी को आवश्यक पूंजी की मात्रा एवं उसका स्वरूप तय करने के लिए एक वित्तीय योजना बनानी होती है ।योजना के अंतर्गत निम्नलिखित तीन बातों का निर्णय लिया जाता हैं।
1 पूंजी की मात्रा का अनुमान
Estimate ऑफ capital Requirements
नये व्यवसाय के लिए दो प्रकार कि पूंजी कि आवश्कता पड़ती है( a ) स्थाई पूंजी (b) कार्यशील पूंजी स्थायी पूंजी के अंतर्गत जैसे - भूमि ,मशीन ,प्लांट ,फर्नीचर यदि क्रय की जाती है इन सब की आवश्यकताओं को जानकर ही स्थाई पूंजी का अनुमान लगाया जा सकता है उद्यमी की दिन प्रतिदिन की आवश्यकताओं के लिए कार्यशील पूंजी की व्यवस्था करनी पड़ती है जैसे - कच्चा माल ,मजदूरी ,खरीद आदि भुगतान करने वस्तु भुगतान की जाती है वस्तुओं की बिक्री के लिए किए गए खर्च आदि के लिए आवश्यक होती है इसका अनुमान उद्योग की प्रकृति कच्चे माल की खरीदारी , आधार बिक्री उत्पादन की गति या वस्तु की मांग, को ध्यान में रखा जाता है
पूंजी संरचना
(capital structure)
इसका तात्पर्य है यह निर्धारित करता है की कुल पूंजी का कितना भाग अंश जारी करके एकत्रित किया जाए तथा कितना ऋण लेकर संस्था की पूंजी संरचना में स्वामित्व पूंजी और पूंजी में प्रयुक्त संतुलन रखना चाहिए क्योंकि इस अनुपात का संस्था की वित्तीय पर सीधा प्रभाव पड़ता है वित्तीय नियोजन करते समय उद्यमी को कई बातों को ध्यान में रखनी चाहिए
(a ) अस्थाई पूंजी जहां तक संभव हो केवल दीर्घकालीन स्रोतजैसे स्वामित्व पूंजी का स्रोत ऋण पत्र निर्गमन आदि से ही प्राप्त की जानी चाहिए
(b) उधमि को अपने व्यवसाय की आवश्यकताओं के अनुरूप की पूंजी एकत्रित करनी चाहिए लाभ क्षमता से ज्यादा पूंजी एकत्रित करने पर संस्था पूंजी ढांचा अति पंजीकृत हो जाएगा।
(c) पूंजी योजना में पर्याप्त लोच रखनी चाहिए ताकि संस्था व्यावसायिक चक्र में उतार चढ़ाव का डटकर सामना कर सके
5. संगठनात्मक नियोजन
(Organisation planning)
6.विपणन नियोजन
(Marketing planning)
a.भौतिक वितरण (physical distribution)
b.मूल्य( price)
b.विक्रय संवर्धन( sales promotion)