वित्त व्यवस्था क्या है ?

 वित्त व्यवस्था 

Collecting  the Finances ui






उपक्रम की वैधानिक स्थापना हो जाने तथा आवश्यक संसाधनों को एकत्रित कारण कर लेते लेने के पश्चात वित्त की व्यवस्था करना एक महत्वपूर्ण  कार्य होता है वित्त के अभाव में उद्यमी की योजना साकार नहीं हो पता है। इसलिए उद्यमी को विभिन्न स्रोतों और साधनों से एकत्रित करना होता है । वित्त स्रोतों के दो  वर्गों मे विभाजित किया  गया है।( a)  स्वामीत्व पूंजी स्रोत
(b)  ऋण पूंजी स्रोत
 

(a)स्वामीत्व पूंजी  स्रोत
  
स्वामित्व की दशा में उद्यमी का निजी विनियोग और पूंजी     साझेदारी फॉर्म में साझेदारों द्वारा लगाए गए पूंजी कंपनी और        सहकारी संस्था में अंसारियां द्वारा चलाई गई पूंजी को स्वामित्व   पूंजी कहलाती है।


(b)ऋण पूंजी स्रोत


एक व्यावसायिक उपक्रम को ऋण पूंजी भी प्राप्त करनी होती है ऋण पूंजी प्राप्त करने के विभिन्न स्रोत हैं जैसे औद्योगिक वित्त वित्त निगमन और व्यापारिक व्यापारिक बैंकों से ऋण प्राप्त करना, राज्य सरकार मित्रों और सहयोगियों से ऋण प्राप्त करना, सार्वजनिक जमाधान राशि स्वीकार करना तथा ऋण पत्र जारी करना ,ऋण पूंजी नियमित ब्याज देना होता है और कोई संस्था भी अपने संपत्तियों को गिरवी रखने पर होती है।




1.राज्य  सरकारों  ऋण

 (Loans Advanced by State  government )

राज्य सरकारों से लिए गए ऋण पर ब्याज की दर अत्यंत कम होती है यानी 3 से 4% होती है सरकारी इकाइयों की दशा में यह और भी कम होती है ।ऋण स्वीकृत  करने का अधिकार जिला उद्योग केंद्र को होता है।



2.राज्य  वित्त निगम

(State Financial Corporations)

   राज की निगमन से निजी कंपनियों और  सरकारी संस्थाएं     अधिक  ऋण प्राप्त  कर सकते हैं ।जबकि उन संस्थाएं कम           ऋण  प्राप्त कर सकती हैं ।और राज्य निगम ऋण स्वीकृत   करने से पूर्व उधम  की पूंजी संरचना ,उत्पादन लागत, लाभ    मार्जिन, तकनीकी योग्यता ,प्रबंधकीय योग्यता ,और आर्थिक      घटकों पर विचार करते हैं।


3.राष्ट्रीयकृत बैंक 

(Nationalised Banks )

 
राष्ट्रीयकृत बैंक भी स्वनियोजित उद्यमियों को ऋण  के रूप में वित्तीय सहायता उपलब्ध कराते हैं। वह उद्यमियों स्वरोजगार में लगे कामगारों ,एकल  व्यापारियों फार्मो संयुक्त हिंदू परिवारों, कंपनियां, औद्योगिक सहकारी, समितियां ,आदि को ऋण प्रदान करते हैं ।बैंकों द्वारा विभिन्न प्रकार के ऋण और अग्रिम प्रदान किए जाते हैं ।जिसे बैंक उद्योग की प्रकृति तथा इसकी वाणिज्य तकनीकी और आर्थिक व्यवस्था की जांच करके ऋण प्रदान करते हैं।


4. लघु उद्योग विकास निगम

(Small Industries  Development Corporation )


लघु उद्योग विकास निगम भी उद्यमियों को रियायती दर पर कार्यशील पूंजी की आवश्यकता के लिए ऋण उपलब्ध कराता है ।विभिन्न संस्थाओं से ऋण और वित्तीय सहायता प्राप्त कर लेने पर उद्यमी इस वित्तीय योजना के अनुसार विनियोजित करने की व्यवस्था करते हैं। उद्यमी को इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए की पूंजी के आभाव  में कोई काम रुके नहीं लेकिन व्यवसाय में पूंजी का आवश्यकता से अधिक होना भी उचित नहीं होता है ।



    व्यवसाय का प्रारंभ

   (  Commencement of  Business )
 

 उपकरण की स्थापना की समस्त कार्यवाही पूर्ण हो जाने पर     संस्था अपना व्यवसाय प्रारंभ कर देती है। सर्वप्रथम संस्था   और  उत्पादन कार्यक्रम तैयार करके उसके अनुसार उत्पादन की गतिविधियां प्रारंभ कर देती है । जिसमें कच्चा माल खरीदना  ,मजदूरों की भर्ती करना, तकनीकी सेवाएं प्राप्त करने, प्रमुख  हैं   संस्था   का कार्यालय विभिन्न  है।  जैसे  व्यक्तियों    से संबंधित पत्र  व्यवहार करता है ।कार्यालय बाहर से विभिन्न सूचनाओं प्रदान करता है , उनका  अभिलेख करता है,  तथा     विभिन्न लागत वित्तीय एवं सांख्यिकी विवरण एवं प्रतिवेदन     तैयार कर  सूचनाओं को व्यवस्थित करता है

 एक संयुक्त पुंजियों वाली कंपनी की दशा में व्यवसाय प्रारंभ करने के लिए इसका सचिवालय विभिन्न वैधानिक पुस्तकों को तैयार करता है सदस्यों के रजिस्टर तैयार किया जाते हैं आज धारी को अंश प्रमाण पत्र पर अंश अधिपत्र जारी किए जाते हैं एक उद्यमी अपने उद्योग के संचालन के लिए विभिन्न विभागों एजेंसियों से संपर्क करता है जैसे मशीन उपकरण और अन्य आवश्यक यंत्र खरीदने के लिए वह राज्य वित्त निगम से संपर्क करता है। 








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