स्थायी पूंजी का अर्थ तथा परिभाषा

स्थायी पूंजी  का अर्थ तथा परिभाषा-

 स्थाई पूंजी को अचल पूंजी भी  कहते हैं। स्थाई पूंजी  से आशय पूंजी के उस भाग्य से है जिसका निवेश स्थाई सम्पत्तियो से है जैसे की भूमि भवन फर्नीचर  उपकरण आदि को खरीद के लिए किया जाता है । इन संपत्तियों का क्रय करने का उद्देश लंबे समय तक इसके आय अर्जित करना होता है तथा पूंजी एक लंबे समय तक व्यवसाय में अवरुद्ध रहती  है इसे  स्थाई पूंजी कहते हैं।

       व्हीलर के अनुसार,"स्थिर पूंजी स्थिर एवं दीर्घकालीन संपत्तियों में विनियोजित होती है स्थिर पूंजी की राशि उपकरण द्वारा स्थित संपत्तियों के प्रयोग में के अनुसार अनुपातिक दर से बदलती है"

       फ्लेने एंड मिलर के अनुसार,"स्थाई संपत्तियां तुलनात्मक दृष्टि से स्थायी प्रकृति की होती हैं जिनका उपयोग व्यवसाय के संचालन में होता है और यह विक्रय के लिए नहीं   होती है,"

 स्थायी पूंजी स्थाई पूंजी की विशेषताएं -

 स्थायी पूंजी की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

1. स्थायी पूंजी व्यवसाय में दीर्घकाल तक रहती है।

2. स्थायी कुंजी का उपयोग स्थायी  संपतियो के क्रय करने में होती है ।

3. स्थायी पूंजी की मात्रा व्यवसाय की प्रकृति पर निर्भर करती है

4. स्थायी पूंजी में अत्याधिक जोखिम होती है। 

5. स्थाई संपत्ति पर विनियोजित धनराशि पर काफी समय व्यतीत हो जाने के पश्चात पर्याप्त आय प्राप्त होती है

6. यह लागत संरचना को प्रभावित करती है।

7. यह व्यवसाय को भावी मार्ग निर्धारित करती है


स्थाई पूंजी को प्रभावित करने वाले घटक तत्व-

         स्थाई पूंजी को प्रभावित करने वाले घटक या तत्व निम्नलिखित है-

1. व्यवसाय की प्रकृति (Nature of  Business )-

        स्थाई पूंजी की आवश्यकता व्यवसाय की प्रकृति पर निर्भर होती है। व्यवसाय की प्रकृति सामान्यता दो  प्रकार के होती है । निर्माणी व्यवसाय तथा व्यापारिक व्यवसाय  होते है।

2.इकाई का पैमाना /आकार( size Scale of unit )-

         व्यवसायिक इकाई का आकार या पैमाना भी स्थायी पूंजी की आवश्कता को प्रभावित करता है । बड़े आकार वाली  व्यावसायिक इकाई जैसे  पानी का जहाज, रेलवे, वायुमान , लोहा का इस्पात, आदि   यह बड़ी  मात्रा में स्थायी पूँजी की आवश्कता होती है।  छोटे  आकार वाले  व्यवसायिक इकाईयों में काम पूंजी की आवश्कता होती है ।

3. सहायता का स्तर( Level of collaboration) -

          इसका मतलब व्यवसाय संचालन में अन्य संगठनो की मदद प्राप्त करता है   कोई भी बैंक का ATM को अन्य  बैंक इसे  भी प्रयोग   करती है  इसे सहायक कहा जाता है ।इस  सुविधा का उपलब्ध करवाने वाली बैंक को किराया के रूप में  आय होगी जिसे सहायता का स्तर कहा जाता है।

4.  उत्पादन की तकनीक( Technique of Production)-

        निर्माणी व्यवसायिक इकाइयों   जिनमे बड़े आकार  वाले एवं स्वचालित यंत्र के द्वारा उत्पादन किया जाता है। बड़ी मात्रा में स्थाई पूंजी की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत जिन  व्यवसायिक इकाइयों में लघु यंत्रों  एवं  अधिकांश:  मानव शक्ति द्वारा उत्पादन होता है ,उनमें कम मात्रा स्थाई पूंजी की आवश्यकता होती है ।

5.  स्थायी संपत्तियो को प्राप्त करने की विधि(Mode of Acquiring Fixed Assets)-

      व्यवसाय के लिए आवश्यक है स्थाई संपत्तियों का क्रय नगद राशि का भुगतान करके अथवा किस्तों पर किया जा सकता है ।जो व्यवसायिक इकाइयों नगद राशि का भुगतान करके स्थाई संपत्तियो का   क्रय करती है

6.  विकास की संभावनाएं (Gowth Prospects)-

       Yadi sangathan aisa hai एनएच को प्राप्त कर सकें कि यदि संगठन ऐसा है जिसमें विकास की अधिक संभावनाएं होती हैं तो ऐसे  संगठन के लिए भविष्य    अतिरिक्त  स्थाई पूंजी की आवश्यकता होगी जिसके लिए संगठन में पहले से ही वित्तीय स्रोतों को चयन कर लिया जाता है।






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